Class 10 Science Chapter 6 Notes in Hindi | जैव प्रक्रम

Class 10 Science Chapter 6 Notes in Hindi : covered science Chapter 6 easy language with full details details & concept  इस अद्याय में हमलोग जानेंगे कि –जैव प्रक्रम क्या है किसे कहते है,सजीव और निर्जीव क्या है किसे कहते है, पोषण क्या है इस के कटने प्रकार होते है, विषमपोषी पोषण क्या है, जीव अपना पोषण कैसे करते है,मुखगुहा क्या है, पाचन ग्रन्थियाँ क्या होते है, श्वसन क्या है, श्वसन के प्रकार के होते है, मानव में वहन क्या है?

Class 10 Science Chapter 6 Notes in Hindi full details

category  Class 10 Science Notes in Hindi
subjects  science
Chapter Name Class 10 biological process ( जैव प्रक्रम )
content Class 10 Science Chapter 6 Notes in Hindi
class  10th
medium Hindi
Book NCERT
special for Board Exam
type readable and PDF

NCERT class 10 science Chapter 6 notes in Hindi

विज्ञान अद्याय 6 सभी महत्पूर्ण टॉपिक तथा उस से सम्बंधित बातों का चर्चा करेंगे।


विषय – विज्ञान  अध्याय – 6

जैव प्रक्रम

biological process


जैव प्रक्रम :- वे सभी क्रियाएँ जो आपस में मिलकर शरीर के अंगों की मरम्मत का कार्य करते है, उसे जैव प्रक्रम कहा जाता है।

अथवा

वे सभी प्रक्रियाएँ जो संयुक्त रूप से जीव के अनुरक्षण का कार्य करती है उसे जैव प्रक्रम कहा जाता है।
सजीव वस्तुएँ :-

वे सभी वस्तुएँ सजीव वस्तएँ कहलाती है , जिसमें पोषण , श्वसन , उत्सर्जन तथा वृद्धि जैसी क्रियाएँ होती है । जैसे :- जंतु और पौधे ।

 निर्जीव वस्तुएँ :-

वे सभी वस्तुएँ निर्जीव वस्तुएँ कहलाती है , जिसमें जीवन के कोई भी आवश्यक कार्य संपन्न नहीं होता । जैसे :- चट्टान , मिट्टी , लकड़ी इत्यादि ।
सजीव और निर्जीव में अंतर :-

निर्जीव सजीव
ये पोषण नहीं करते है ।  ये पोषण करते है ।
इनमें श्वसन नहीं होता है ।  इनमें श्वसन होता है ।
ये जनन नहीं करते है । ये जनन करते है ।
इनमें वृद्धि नहीं होता है ।  इनमें वृद्धि होता है ।
ये स्थान परिवर्तन नहीं करते है ।  ये स्थान परिवर्तन करते है ।

पोषण :-

भोजन ग्रहण करना , पचे भोजन का अवशोषण एवं शरीर द्वारा अनुरक्षण के लिए उसका उपयोग , पोषण कहलाता है ।

पोषण के प्रकार :-

पोषण के आधार पर जीवों को दो समूह में बाँटा जा सकता है ।

स्वपोषी पोषण
विषमपोषी पोषण ( इसके तीन प्रकार होते हैं )
मृतजीवी पोषण जैसे :- कवक , बैक्टीरिया , प्रोटोजोआ
परजीवी पोषण जैसे :- गोलकृमि , मलेरिया परजीवी
प्राणिसम पोषण जैसे :- अमीबा , मेंढ़क , मनुष्य
स्वपोषी पोषण :-

पोषण का वह तरीका जिसमें जीव अपने आस – पास के वातावरण में उपस्थित सरल अजैव पदार्थों जैसे CO2 , पानी और सूर्य के प्रकाश से अपना भोजन स्वयं बनाता है । उदाहरण :- हरे पौधे ।

स्वपोषी पोषण हरे पौधों मे तथा कुछ जीवाणुओं जो प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं , में होता है ।

स्वपोषी जीव की कार्बन तथा ऊर्जा की आवश्यकताएँ प्रकाश संश्लेषण द्वारा पूरी होती हैं ।

प्रकाश संश्लेषण :-यह वह प्रक्रम है जिसमें स्वपोषी बाहर से लिए पदार्थों को ऊर्जा संचित रूप में परिवर्तित कर देता है । ये पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के रूप में लिए जाते हैं , जो सूर्य के प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर दिए जाते हैं । 6CO₂ + 12H₂O = क्लोरोफिल/सूर्य का प्रकाश C₆H₁₂O₆ ( ग्लूकोज़ ) + 6O₂ + 6H₂O
रन्ध्र :-

पेड़ पौधें में पत्तियों की सत्तह पर छोटे-छोटे छिद्र पाये जाते है, जिसे रन्ध्र कहा जाता है।
प्रकाश-संश्लेष्ण की प्रक्रिया के दौरान इन छोटे-छोटे छिद्रों से गैसों का आदान – प्रदान होता है।
वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया के दौरान जल का बूंदों के रूप में अवशोषित करना।

विषमपोषी पोषण :-

वह पोषण जिसमें जीव अपने भोजन के लिए दूसरों जीवों पर निर्भर रहते है अर्थात् अपना भोजन खुद नहीं बना सकते, उसे “विषमपोषी पोषण” कहा जाता है।
1. प्राणीसम पोषण:-
वे जीव जो सम्पूर्ण भोज्य पदार्थों का अन्तर्ग्रहण करते है तथा उनका पाचन शरीर के भीतर होता है, उसे प्राणीसम पोषण कहा जाता है।
2. मृतजीवी पोषण :-
वे जीव जो अपना भोजन मृतजीवों तथा सडे-गले पदार्थों से प्राप्त करते है, उसे “मृतजीवी पोषण” कहा जाता है। उदाहरण – फफूंद, कवक ।

3. परजीवी पोषण :-
वे जीव जो अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर रहते है परन्तु ये जीवों को मारकर अपना भोजन नहीं ग्रहण करते है, ये जीव अन्दर या बाहर से अपना भोजन ग्रहण करते है, उसे परजीवी पोषण कहा जाता है। उदाहरण – जूँ , अमरबेल आदि।

i. अमीबा में पोषण :-
अमीबा एक कोशिकीय प्राणी समपोषी जीव है जो प्रोटोजोआ संघ का सदस्य है। यह अनिश्चित आकार का होता है जो नदियों, तालाबों तथा झीलों में पाया जाता है।

पैरामीशियम भी एककोशिक जीव है , इसकी कोशिका का एक निश्चित आकार होता है तथा भोजन एक विशिष्ट स्थान से ही ग्रहण किया जाता है । भोजन इस स्थान तक पक्ष्याभ की गति द्वारा पहुँचता है जो कोशिका की पूरी सतह को ढके होते हैं ।

स्वयंपोषी पोषण  विषमपोषी पोषण
यह पोषण हरे पौधे में पाया जाता है। यह पोषण कीटों तथा जन्तुओं में पाया जाता है।
इस पोषण में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल से कार्बनिक पदार्थों का निर्माण होता है।  जंतु अपने भोजन हेतु पौधों एवं शाकाहारी प्राणियों पर निर्भर करते हैं।
पौधे प्रकाशसंश्लेषण में पर्ण हरित तथा सूर्य के प्रकाश को प्रयोग करते है।  विषमपोषी पोषण में भोजन का निर्माण नहीं होता है।
पौधों को भोजन के निर्माण के लिए अकार्बनिक पदार्थों की आवश्यकता होती है।  जन्तुओं को अपने भोजन हेतु कार्बनिक पदार्थों की आवश्यकता होती है।

जीव अपना पोषण कैसे करते है :-

एक कोशिकीय जीव :- एक कोशिकीय जीव अपना भोजन संपूर्ण सतह से ले सकते है । जैसे :- अमीबा , पैरामीशियम ।

अमीबा :-

एक कोशीय अनिश्चित आकार वाला प्राणिसमपोषी जीव है ।
कुटपादों द्वारा भोजन ग्रहण करता है ।
अमीबा के भोजन :- शैवाल के छोटे टुकड़े , बैक्टीरिया , डायटम अन्य जीव एवं मृत कार्बनिक पदार्थ ।
अमीबा में पोषण :-

अमीबा में पोषण तीन चरण में पूर्ण होते हैं :-

अंतर्ग्रहण :- अमीबा कोशिकीय सतह से अँगुली जैसे अस्थायी प्रवर्ध की मदद से भोजन ग्रहण करता है । यह प्रवर्ध भोजन के कणों को घेर लेते हैं तथा संगलित होकर खाद्य रिक्तिका बनाते हैं ।
पाचन :- खाद्य रिक्तिका के अंदर जटिल पदार्थों का विघटन सरल पदार्थों में किया जाता है और वे कोशिकाद्रव्य में विसरित हो जाते हैं ।
बहिष्करण :- बचा हुआ अपच पदार्थ कोशिका की सतह की ओर गति करता है तथा शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है ।
पैरामीशियम :-

पैरामीशियम भी एककोशिक जीव है , इसकी कोशिका का एक निश्चित आकार होता है तथा भोजन एक विशिष्ट स्थान से ही ग्रहण किया जाता है । भोजन इस स्थान तक पक्ष्याभ की गति द्वारा पहुँचता है जो कोशिका की पूरी सतह को ढके होते हैं ।

बहु कोशिकीय जीव :- बहुकोशिकीय जीव में पोषण के लिए विभिन्न प्रकार के अंग तथा अंगतंत्र होता है । जैसे :- मानव
मनुष्य में पोषण :-

पोषण के चरण :- मुखगुहा → अमाशय → क्षुद्रांत्र / छोटी आत → बृहद्रां / बड़ी आत

मुखगुहा :-

भोजन को मुखगुहा में दाँतों द्वारा छोटे छोटे टुकड़ो में तोड़ा जाता हैं , और लार ग्रंथी से निकलने वाला लार या लालारस भोजन से पेशीय जिहा द्वारा मिलाया जाता है जिससे भोजन आसानी से आहार नाल में क्रमाकुचक गति द्वारा गमन करता है ।

.लार मे एक एंजाइम होता है जिसे लार एमिलेस या टायलिन कहते है । यह मंड को शर्करा में खंडित करता है ।

.मनुष्य कि मुखगुहा में तीन जोड़ी लारग्रंथी होती है :-

पैरोटिड ग्रंथी
सबमैंडिबुलर लारग्रंथी
सबलिंगुअल लारग्रंथी
4. आमाशयमुहँ से आमाशय तक भोजन ग्रसिका या इसोफेगस द्वारा क्रमाकुंचक गति द्वारा ले जाया जाता है । आमाशय की पेशीय भित्ति भोजन को अन्य पाचक रसों के साथ मिश्रित करने मे सहायता करती है । अमाशय के भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंथि जो हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ( HCL ) , प्रोटीन पाचक एंजाइम पेप्सिन तथा श्लेमा का स्रावण करती है ।

आकार की पेशीय संरचना है।
तनुपट के नीचे कुछ बांयी और एक थैलेनुमा संरचना है। (1-3 लीटर आहार धारित)
भोजन पाचन को रोक कर रखता है।
आमाशय में भोजन लगभग 3-4 घण्टे तक रूकता है। इसमें जठर रस में (HCl) पेप्सीन, रेनिन, श्लेष्मा होती है।

पेप्सीन – प्रोटीन का पाचन
रेनिन – दुध का पाचन
श्लेष्मा – आमाशय की दीवार पर रक्षात्मक आवरण बनाती है।
आमाशय में दो अवरोधिनी पायी जाती है-

1. जठरागम अवरोधिनी

ग्रसिका व आमाशय को विभाजित करती है।
अम्लीय भोजन को ग्रसनी में जाने से रोकने का कार्य करती है।
2. जठरनिर्गमी अवरोधिनी

आमाशय व छोटी आंत को विभाजित करती है।
छोटी आंत में भोजन निकास का नियंत्रण का कार्य करती है।
3. छोटी आँत(क्षुदांत्र)
• सर्वाधिक पाचन व अवशोषण होता है। इसमे दो ग्रन्थियों द्वारा रस आता है
(1) यकृत
(2) अग्न्याशय
आहारनाल का सबसे लम्बा भाग (लगभग 7 मीटर)

. बडी आँत (वृहदांत्र)–
कुछ विशेष जीवाणु पाये जाते हैं। छोटी आँत से शेष बचे अपचित भोजन को किण्वन क्रिया द्वारा सरलीकृत कर पाचन में मदद करते हैं।
इसमें पाचन क्रिया नही होती है केवल जल व खनिज लवणों का अवशोषण होता है। अपचित भोजन मलद्वार के द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
मुखगुहा :-पाचन ग्रन्थियाँ

1. लार ग्रन्थियाँ :-
मनुष्य मे तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पाई जाती है। लार की प्रकृति हल्की अम्लीय होती है।
तीन जोड़े :- कर्णपूर्ण ग्रन्थि, अधोजभ, अधोजिह्वा

लार मे लार एमाइलेज या टायलिन एन्जाइम पाया जाता है। यह एन्जाइम कार्बोहाइड्रेड (स्टार्च) का 30% पाचन करता है।

. अग्न्याशय :-
शरीर में रक्त शर्करा को नियंत्रित करना।
आंतो में प्रोटीन, वसा व कार्बोहाइड्रेड का पाचन
3. यकृत :-
सबसे बड़ी ग्रन्थि जो पित का निर्माण करती है। पिताशय में सग्रंहित पित वसा के पायसीकरण तथा एंजाइमों के लिए क्षारीय माध्यम बनाने का कार्य करता है। यह मध्यपट के नीचे स्थित लगभग त्रिकोणाकार अंग है। यकृत दो भागों – दायीं और बायीं पालियों में विभाजित नजर आता है।
स्थलीय जीव व जलीय जीव –
जलीय जीव जल में घुली हुई ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन प्रक्रिया के दौरान करते हैं। जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा उपयोग करते है। जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा वायुमण्डल में उपस्थित ऑक्सीजन की मात्रा से बहुत कम है।

जलीय जीवों की श्वसन दर स्थलीय जीवों की श्वसन दर के अपेक्षा बहुत तेज होती है। जलीय जल मुंह की सहायता से जल को ग्रहण कर बलपूर्वक क्लोम तक पहुँचाने का कार्य करता है।

स्थलीय जीव जलीय जीव
वायुमण्डल में उपस्थित ऑक्सीजन को ग्रहण करते है। (1) श्वसन के दौरान जल में घुली हुई ऑक्सीजन का उपयोग करते है।
मनुष्य (2) जलीय जीव- मछलियाँ आदि
श्वसन दर कम होती है। (3) श्वसन दर अधिक होती है।
(4) O2पर्याप्त मात्रा में (4) जल में घुली O2 कम
(5) फेफड़ों से (5) क्लोम से
वायवीय श्वसन (ऑक्सी श्वसन) अवायवीय श्वसन (अनॉक्सी श्वसन)
1. यह श्वसन वायु (ऑक्सीजन) की उपस्थिति में होता हैं। यह श्वसन वायु (ऑक्सीजन) की अनुपस्थिति में होता हैं।
2. यह क्रिया कोशिकाद्रव्य एवं माइटोकॉण्डिया में घटित एवं पूर्ण होती हैं। यह क्रिया केवल कोशिकाद्रव्य में घटित एवं पूर्ण होती हैं।
3. इस क्रिया में CO2 एवं H2O उत्पन्न होते हैं। इस क्रिया में CO2 एवं ऐल्कोहॉल उत्पन्न होते हैं।
4. इस श्वसन में बहुत अधिक ऊर्जा मोचित होती हैं। (38 ATP) इस श्वसन में वायवीय श्वसन की अपेक्षा बहुत कम ऊर्जा मोचित होती हैं । (2 ATP)

श्वसन :-

पोषण प्रक्रम के दौरान ग्रहण की गई खाद्य सामग्री का उपयोग कोशिकाओं में होता हैं जिससे विभिन्न जैव प्रक्रमों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है । ऊर्जा उत्पादन के लिए कोशिकाओं में भोजन के विखंडन को कोशिकीय श्वसन कहते हैं ।

श्वसन के प्रकार :-

श्वसन दो प्रकार के होते है :-

वायवीय श्वसन
अवायवीय श्वसन
वायवीय श्वसन :- कोशिका के कोशिका द्रव्य में मौजूद कोशिकांग माइटोकॉण्ड्रिया में पायरूवेट का विखण्डन ऑक्सीजन के उपस्थिति में होता है । इस अभिक्रिया को वायवीय श्वसन कहते है । परिणाम स्वरूप जल , CO2 और उर्जा की प्राप्ती होती है । ऊर्जा ATP में संचित हो जाती है । वायवीय श्वसन में अधिक ऊर्जा उत्पन्न होता है ।

 अवायवीय श्वसन :- कोशिका के कोशिका द्रव्य में ग्लूकोज का आंशिक विखण्डन ऑक्सीजन के अनुपस्थिति में एंजाइम की मदद से होता है । इसे ही अवायविय श्वसन कहते है । परिणाम स्वरूप इथेनॉल , लैक्टिक अम्ल तथा CO2 का निर्माण होता है । इसमें आंशिक उर्जा की प्राप्ति होती है तथा CO2 के दो अणु बनते है
मानव श्वसन तंत्र की क्रियाविधि :-

मनुष्य के शरीर के अंदर वायु नासाद्वार द्वारा जाती है ।
नाक में उपस्थित महीन बाल व श्लेष्मा वायु के साथ अंदर जाने वाली अशुद्धियों को रोक लेते हैं । यह अशुद्धियाँ परागकण , धूल मिट्टी , जीवाणु राख आदि हो सकती हैं ।
नासाद्वार से अंदर आ चुकी वायु ग्रसनी व कंठ से होते हुए श्वास नली में प्रवेश करती है ।
ग्रसनी :- यह श्वसन व पाचन तंत्र के लिए समान मार्ग है ।

कंठ या स्वर यंत्र :- यह श्वास नली के ऊपर व ग्रसिका के सामने उपस्थित एक नली है , जिसकी लंबाई वयस्कों में लगभग 5 cm होती है ।

कंठ में उपास्थि के वलय उपस्थित होते हैं । यह सुनिश्चित करता है कि वायु मार्ग निपतित न हो ।
श्वास नली से होकर वायु श्वसनी के माध्यम से फुफ्फुस में प्रवेश करती हैं ।
फुफ्फुस के अंदर मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाता है जो अंत में गुब्बारे जैसी रचना में अंतकृत हो जाता है जिसे कूपिका कहते हैं ।
कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है । कृपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है ।
जब हम श्वास अंदर लेते हैं , हमारी पसलियाँ ऊपर उठती हैं और हमारा डायाफ्राम चपटा हो जाता है , इसके परिणामस्वरूप वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है ।
इस कारण वायु फुफ्फुस के अंदर चूस ली जाती है और विस्तृत कूपिकाओं को भर लेती है ।
रुधिर शेष शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है । कूपिका रुधिर वाहिका का रुधिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है ।

अंतः श्वसन
अंतः श्वसन के दौरान :- उच्छवसन
वृक्षीय गुहा फैलती है । वृक्षीय गुहा अपने मूल आकार में वापिस आ जाती है ।
पसलियों से संलग्न पेशियां सिकुड़ती हैं । पसलियों की पेशियां शिथिल हो जाती हैं ।
वक्ष ऊपर और बाहर की ओर गति करता है । वक्ष अपने स्थान पर वापस आ जाता है ।
गुहा में वायु का दाब कम हो जाता है और वायु फेफड़ों में भरती है । गुहा में वायु का दाब बढ़ जाता है और वायु ( कार्बन डाइऑक्साइड ) फेफड़ों से बाहर हो जाती है ।
मानव श्वसन तंत्र :-

🔹 नासाद्वार → ग्रसनी → कंठ → श्वास नली → श्वसनी → श्वसनिका → फुफ्फुस ( फेफड़े ) → कूपिका कोश → रुधिर वाहिकाएं
संवहन :-

🔹 मनुष्य में भोजन , ऑक्सीजन व अन्य आवश्यक पदार्थों की निरंतर आपूर्ति करने वाला तंत्र , संवहन तंत्र कहलाता है ।

मानव में वहन :-

🔹 मानव संवहन तंत्र के मुख्य अवयव :-

हृदय
रक्त नलिकाएं ( धमनी व शिरा )
वहन माध्यम ( रक्त व लसीका )
हमारा पंप – हृदय :-

हृदय एक पेशीय अंग है जो हमारी मुट्ठी के आकार का होता है ।
ऑक्सीजन प्रचुर रुधिर को कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रुधिर से मिलने को रोकने के लिए हृदय कई कोष्ठों में बँटा होता है ।
हृदय का दायाँ व बायाँ बँटवारा ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से रोकने में लाभदायक होता है ।
मानव हृदय एक पम्प की तरह होता है जो सारे शरीर में रुधिर का परिसंचरण करता है ।
हृदय में उपस्थित वाल्व रुधिर प्रवाह को उल्टी दिशा में रोकना सुनिश्चित करते हैं ।
रक्तदाब :- रुधिर वाहिकाओं की भित्ति के विरुद्ध जो दाब लगता है उसे रक्तदाब कहते हैं ।

रक्त नलिकाएं :-

धमनी
शिरा

🔶 धमनी :-

धमनी वे रुधिर वाहिकाएँ हैं जो रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं ।
धमनी की भित्ति मोटी तथा लचीली होती है क्योंकि रुधिर हृदय से उच्च दाब से निकलता है ।
वाल्व नहीं होते ।
ये सतही नहीं होती , उत्तकों के नीचे पाई जाती हैं ।
🔶 शिरा :-

शिराएं विभिन्न अंगों से अनॉक्सीकृत रुधिर एकत्र करके वापस हृदय में लाती हैं । अपवाद फुफ्फुस – शिरा
शिरा की भित्ति कम मोटी व कम लचीली होती है ।
वाल्व होते हैं ।
ये सतही होती हैं ।
लसीका :-

🔹 एक तरल उत्तक है , जो रुधिर प्लाज्मा की तरह ही है ; लेकिन इसमें अल्पमात्रा में मोटीन होते हैं । लसीका वहन में सहायता करता है ।

पादपों में परिवहन :-

🔹 पादप तंत्र का एक अवयव है , जो मृदा से प्राप्त जल और खनिज लवणों का वहन करता है जबकि फ्लोएम पत्तियों द्वारा प्रकाश संश्लेषित उत्पादों को पौधे के अन्य भागों तक वहन करता है ।

🔹 जड़ व मृदा के मध्य आयन साद्रण में अंतर के चलते जल मृदा से जड़ों में प्रवेश कर जाता है तथा इसी के साथ एक जल स्तंभ निर्माण हो जाता है , जो कि जल को लगातार ऊपर की ओर धकेलता है ।

🔹 यही दाब जल को ऊँचे वृक्ष के विभिन्न भागों तक पहुचाता है । यही जल पादप के वायवीय भागों द्वारा वाष्प के रूप में वातावरण में विलीन हो जाता है , यह प्रकम वाष्पोत्सर्जन कहलाता है । इस प्रकम द्वारा पौधों को जल के अवशोषण एवं जड़ से पत्तियों तक जल तथा विलेय खनिज लवणों के उपरिमुखी गति में तथा पौधों में ताप नियमन में सहायता मिलती है ।

पौधों में भोजन तथा दूसरे पदार्थों का स्थानांतरण :-

प्रकाश संश्लेषण के विलेय उत्पादों का वहन स्थानांतरण कहलाता है जो कि फ्लोएम ऊतक द्वारा होता है ।
स्थानांतरण पत्तियों से पौधों के शेष भागों में उपरिमुखी तथा अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है ।
फ्लोएम द्वारा स्थानातरण ऊर्जा के प्रयोग से पूरा होता है ।
अतः सुक्रोज फ्लोएम ऊतक में ए.टी.पी. ऊर्जा से परासरण बल द्वारा स्थानांतरित होता है ।
उत्सर्जन तंत्र :-

उत्सर्जन तंत्र का अर्थ है –
शरीर से अपशिष्ट पदार्थो को बाहर निकालने की व्यवस्था अत: उत्सर्जन शरीर की वह व्यवस्था हैं जिसमें शरीर की कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट को बाहर निकाला जाता हैं।
कोई भी प्राणी उपापचयी क्रियाओं द्वारा अपशिष्ट पदार्थो जैसे अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल, कॉर्बन डाई ऑक्साइड आदि का संचय करता रहता है । इन अपशिष्ट पदार्थो को बाहर निकालना अत्यन्त आवश्यक हैं अन्यथा ये नाइट्रोजनी अपशिष्ट प्राणी शरीर में विष समान कार्य करते हैं।
अमोनिया – अमोनिया उत्सर्जन अमोनियोत्सर्ग प्रक्रिया के द्वारा सम्पन्न किया जाता है। जैसे अस्थिल मछलियाँ, उभयचर तथा जलीय कीट इस प्रक्रिया द्वारा अमोनिया का उत्सर्जन करते है।
यूरिया – मुख्यत: यूरिया उत्सर्जन स्तनधारी, समुद्री मछलियाँ आदि करते हैं। इन जीवों को यूरिया उत्सर्जी कहा जाता है ।
यूरिक अम्ल – पक्षियों, सरीसृपों, कीटों आदि में अमोनिया को यूरिक अम्ल में परिवर्तित कर यूरिक अम्ल का निर्माण किया जाता है।
मानव में उत्सर्जन :-

🔹 मानव के उत्सर्जन तंत्र में एक जोड़ा वृक्क , एक मूत्रवाहिनी , एक मूत्राशय तथा एक मूत्रमार्ग होता है । वृक्क उदर में रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित होते हैं । वृक्क में मूत्र बनने के बाद मूत्रवाहिनी में होता हुआ मूत्राशय में आ जाता है तथा यहाँ तब तक एकत्र रहता है जब तक मूत्रमार्ग से यह निकल नहीं जाता है ।
वृक्क में मूत्र निर्माण प्रक्रिया :-

🔹 वृक्क की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई वृक्काणु कहलाती है ।

🔹 वृक्काणु के मुख्य भाग इस प्रकार हैं ।

केशिका गुच्छ ( ग्लोमेरुलस ) :- यह पतली भित्ति वाला रुधिर कोशिकाओं का गुच्छा होता है ।
बोमन संपुट
नलिकाकार भाग
संग्राहक वाहिनी
वृक्क में उत्सर्जन की क्रियाविधि :-

🔶 केशिका गुच्छ निस्यंदन :- जब वृक्क – धमनी की शाखा वृक्काणु में प्रवेश करती है , तब जल , लवण , ग्लूकोज , अमीनों अम्ल व अन्य नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थ , कोशिका गुच्छ में से छनकर वोमन संपुट में आ जाते हैं ।

🔶 वर्णात्मक पुन :- अवशोषण :- वृक्काणु के नलिकाकार भाग में , शरीर के लिए उपयोगी पदार्थों , जैसे ग्लूकोज , अमीनो अम्ल , लवण व जल का पुनः अवशोषण होता है ।

🔶 नलिका स्रावण :- यूरिया , अतिरिक्त जल व लवण जैसे उत्सर्जी पदार्थ वृक्काणु के नलिकाकार भाग के अंतिम सिरे में रह जाते हैं व मूत्र का निर्माण करते हैं । वहां से मूत्र संग्राहक वाहिनी व मूत्रवाहिनी से होता हुआ मूत्राशय में अस्थायी रूप से संग्रहित रहता है तथा मूत्राशय के दाब द्वारा मूत्रमार्ग से बाहर निकलता है ।
कृत्रिम वृक्क :- (Artificial Kidney)

कृत्रिम वृक्क (अपोहन) :- यह एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा रोगियो के रुधिर में से कृत्रिम वृक्क की मदद से नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन किया जाता है।

प्राय: एक स्वस्थ व्यस्क में प्रतिदिन 180 लीटर आरंभिक निस्यंदन वृक्क में होता है। जिसमें से उत्सर्जित मूत्र का आयतन 1.2 लीटर है। शेष निस्यंदन वृक्कनलिकाओं में पुनअवशोषित हो जाता है।

पादप में उत्सर्जन
वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया द्वारा पादप अतिरिक्त जल से छुटकारा पाते हैं।
बहुत से पादप अपशिष्ट पदार्थ कोशिकीय रिक्तिका में संचित रहते हैं।
अन्य अपशिष्ट पदार्थ (उत्पाद) रेजिन तथा गोंद के रूप में पुराने जाइलम में संचित रहते हैं।
पादप कुछ अपशिष्ट पदार्थों को अपने आसपास मृदा में उत्सर्जित करते हैं।


Class 10 science chapter 1  Important Question Answer

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Q1. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों
अपर्याप्त है?
उत्तर : विसरण क्रिया द्वारा बहुकोशिकीय जीवो में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन शरीर के प्रत्येक अंग में नहीं पहुचाय जा सकती है | बहुकोशिकीय जीवो में ऑक्सीजन बहुत आवश्यक होता है | बहुकोशिकीय जीवो की संरचना अति जटिल होती है | अतः प्रत्येक अंग को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है | जो विसरण क्रिया नहीं पूरी कर सकती है |

Q2. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धरण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?
उत्तर : सजीव वस्तुए निरंतर गति करती रहती है | चाहे वे सुप्त अवस्था में ही हो | बाह्य रूप से वे अचेत दिखाई देते है | उनके अणु गतिशील रहते है | इससे उनके जीवित होने का प्रमाण मिलता है |

Q3. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?
उत्तर : जीवो को शारीरिक वृद्धि के लिए बाहर से अतिरिक्त कच्ची सामग्री की आवश्यकता होती है | पृथ्वी पर जीवन कार्बन अणुओं पर आधारित है | अतः यह खाद्य पदार्थ कार्बन पर निर्भर है | ये कार्बनिक यौगिक भोजन का ही अन्य रूप है | इनमे ऑक्सीजन व कार्बन – डाइआक्साइड का आदान – प्रदान प्रमुख है | इसके अतिरिक्त जल व खनिज लवण अन्य है | हरे – पौधे इन कच्चे पदार्थ साथ सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में स्टार्च का निर्माण होता है |

Q3. मनुष्यो में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर : मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा काबर्न – डाइऑक्साइड के परिवहन को श्वसन कहते है | यह प्रक्रिया फैफडो द्वारा संपन्न कि जाति है |फैफडो में साँस के द्वारा पहुची हुई वायु में से हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कण ) ऑक्सीजन को ग्रहण कर के शरीर की सभी कोशिकाओ तक पहुचता है | इस प्रकार ऑक्सीजन शरीर के प्रत्येक अंग तक पहुचता है | इसी प्रकार CO2 जो हमारे शरीर में ग्लूकोज के खंडित होकर ऊर्जा में बदलने पर बनती है |यह CO2 रक्त के सपर्क में आने पर उसके प्लाजमा में घुल जाती है | यह CO2 प्लाज़मा के द्वारा पूरे शरीर से पुन : रक्त से वायु में चली जाती है और अतः में नासद्रवारा से बाहर कर दी जाती है |

Q4. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर : वातावरण में ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है जो स्थलीय जीवो द्वारा आसानी से ली जाती है परन्तु जल में ऑक्सीजन की सूक्ष्म मात्रा होती है तथा वह जल में मिला होता है अत: जलीय जीव इस मिले ऑक्सीजन को लेने के लिए काफ़ी गति से साँस लेते है तथा संघर्ष करते है |

Q5. ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवो में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं?
उत्तर : मासपेशियो में ग्लूकोज ऑक्सीजन कि पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीकृत हो ऊर्जा प्रदान करता है तथा ऑक्सीजन कि कम मात्रा होने पर विशलषित होता है तथा लैकिटक अम्ल बनाता है |जीवो कि कोशिकाओ में ऑक्सीकरण पथ निम्न है |


Class 10 science chapter 1  Important Objective Question Answer (MCQ)

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1. किस स्केल पर होने वाली गतियाँ आँखों से दिखाई नहीं देती ?
(a) सूक्ष्म
(b) अति सूक्ष्म
(c) क्षणिक
(d) अति क्षणिक
► (b) अति सूक्ष्म

2. पौधों के बारे में हम कैसे जानेंगें कि वह सजीव है ?
(a) वे हरे दिखते हैं
(b) कुछ पौधों की पत्तियां हरी न होकर अन्य रंग की होती है
(c) पौधे समय के साथ वृद्धि करते हैं
(d) इनमें से कोई नहीं
► (c) पौधे समय के साथ वृद्धि करते हैं

3. वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं वे क्या कहलाते हैं ?
(a) जैव प्रक्रम
(b) अजैव प्रक्रम
(c) पोषण
(d) स्वपोषी
► (a) जैव प्रक्रम

4. सजीव की संगठित व सुव्यवस्थित संरचना समय के साथ साथ किस के प्रभाव के कारण विघटित होने लगती है ?
(a) जीव जगत
(b) मौसम में परिवर्तन
(c) पर्यावरण
(d) समाज
► (c) पर्यावरण

5. ऊर्जा के स्त्रोत को हम भोजन तथा शरीर के अंदर लेने के प्रक्रम को क्या कहते हैं ?
(a) पोषण
(b) स्वपोषण
(c) उत्सर्जन
(d) श्वसन
► (a) पोषण

6. क्षति तथा टूट-फूट रोकने के लिए किस की आवश्यकता होगी ?
(a) अनुरक्षण प्रक्रम
(b) ऊर्जा
(c) (a) और (b) दोनों
(d) क्रियाओं की
► (c) (a) और (b) दोनों
7. किस जीव की पूरी सतह पर्यावरण के संपर्क में रहती है ?
(a) एक-कोशिकीय जीव
(b) बहकोशिकीय जीव
(c) द्वि-कोशिकीय जीव
(d) कोशिकीय जीव
► (a) एक-कोशिकीय जीव

Class 10 Science Chapter 6 hindi notes

8. शरीर के बहर से ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकता के अनुसार खाद्य स्त्रोत के विघटन में उसका उपयोग क्या कहलाता है ?
(a) स्वपोषण
(b) श्वसन
(c) उत्सर्जन
(d) पोषण
► (b) श्वसन

9. किन जीवों में सभी कोशिकाएँ अपने आसपास के पर्यावरण के सीधे सम्पर्क में नहीं रह सकती ?
(a) एक-कोशिकीय जीव
(b) बहकोशिकीय जीव
(c) द्वि-कोशकीय जीव
(d) कोशिकीय जीव
► (b) बहकोशिकीय जीव

10. एक कोशिकीय जीव को क्या करने के लिए किसी विशेष अंग की आवश्यकता नहीं होती है ?
(a) भोजन ग्रहण करने के लिए
(b) गैसों का अदा-प्रदान करने के लिए
(c) वजर्य पदार्थ के निष्कासन के लिए
(d) उपरोक्त सभी
► (d) उपरोक्त सभी

11. अपशिष्ट उत्पादों को शरीर से बाहर निकालना क्या कहलाता है ?
(a) उत्सर्जन
(b) अपशिष्ट पदार्थ
(c) वहन तंत्र
(d) जैव प्रक्रम
► (a) उत्सर्जन

12. भोजन एवं ऑक्सीजन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए किसकी आवश्यकता होती है ?
(a) पाचन तंत्र
(b) तंत्रिका तंत्र
(c) वहन तंत्र
(d) उत्सर्जन तंत्र
► (c) वहन तंत्र

13. जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में खंडित करना ताकि ये जीव के समारक्षण तथा वृद्धि में प्रयुक्त हो सकें । इसे प्राप्त करने के लिए कौन से जैव-उत्प्रेरक का उपयोग किया जाता है ?
(a) क्लोरोफिल
(b) जूस
(c) एंजाइम
(d) उपरोक्त सभी
► (c) एंजाइम

14. जो जीव अकार्बनिक स्त्रोतों से कार्बनडाइऑक्साइड तथा जल के रूप में सरल पदार्थ प्राप्त करते हैं वे कौन से जीव हैं ?
(a) विष्मपोषी
(b) परपोषी
(c) स्वपोषी
(d) उपरोक्त सभी
► (c) स्वपोषी

Class 10 Science Chapter 6 in hindi 

15. निम्न में से प्रकाश संश्लेषण के दौरान कौन-सी घटना होती है ?
(a) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना
(b) प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना
(c) कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन
(d) उपरोक्त सभी
► (d) उपरोक्त सभी

16. स्वपोषी जीव की कार्बन तथा ऊर्जा की आवश्यकताएं किस के द्वारा पूरी होती हैं ?
(a) प्रकाश
(b) जल
(c) प्रकाश संश्लेषण
(d) भोजन
► (c) प्रकाश संश्लेषण

17. एक पत्ती की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शी दवारा अवलोकन करने पर कोशिकाओं में हरे रंग के बिंदु दिखाई देते हैं, इन बिन्दुओं को क्या कहते हैं ?
(a) क्लोरो
(b) फ्लोरो
(c) क्लोरो-फ्लोरो
(d) क्लोरोप्लास्ट
► (d) क्लोरोप्लास्ट

18. मरुदभिद पौधे रात्रि में क्या लेते हैं ?
(a) कार्बन डाइऑक्साइड
(b) ऑक्सीजन
(c) नाइट्रोजन
(d) सल्फर
► (a) कार्बन डाइऑक्साइड


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