Class 10 History Chapter 3 Notes in Hindi | भूमंडलीकृत विश्व का बनना

Class 10 History Chapter 3 Notes in Hindi: covered History Chapter 3 easy language with full details & concept  इस अध्याय में हमलोग जानेंगे कि – वैश्वीकरण किसे कहते हैं(what is globalization), भूमंडलीकरण से आप क्या समझते हैं?(What do you understand by Globalization), आधुनिक युग से पहले की यात्राएँ किस प्रकार की होती थी?, भूमंडलीकृत विश्व के बनने की प्रक्रिया(process of becoming a globalized world), भोजन के यात्रा  शुरुआत कैसे हुई(स्पैघेत्ती और आलू), बिमारी से विजय प्राप्त करना किस प्रकार समस्याएं थी?, अमेरिका में बाहरी लोगों का आगमन कैसे हुआ(How did outsiders come to America)?, 19वीं शताब्दी का विश्व(1815 -1914), अठारहवीं सदी तक भारत और चीन की दिशाएँ(Directions of India and China till the 18th century), विश्व अर्थव्यवस्था का उदय(rise of the world economy), विदेशों में भारतीय  उघमी, भारतीय व्यापार, उपनिवेश और वैश्विक व्यवस्था, वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था का भारत में प्रभाव, भारत और महामंदी(India and the Great Depression) , विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण : युद्धोत्तर काल(Rebuilding the World Economy: The Post-War Period)? सांस्कृतिक समागम से वैश्विक दुनिया का उदय, अनौपनिवेशीकरण और स्वतंत्रता, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ का उद्भव? 

Class 10 History Chapter 3 Notes in Hindi full details

category  Class 10 History Notes in Hindi
subjects  History
Chapter Name Class 10 Becoming a globalized world (भूमंडलीकृत विश्व का बनना) 
content Class 10 History Chapter 3 Notes in Hindi
class  10th
medium Hindi
Book NCERT
special for Board Exam
type readable and PDF

NCERT class 10 History Chapter 3 notes in Hindi

इतिहास अध्याय 3 सभी महत्पूर्ण टॉपिक तथा उस से सम्बंधित बातों का चर्चा करेंगे।


विषय – इतिहास   अध्याय – 3

भूमंडलीकृत विश्व का बनना

Becoming a globalized world


परिचय (Introduction) -: 

वैश्वीकरण (Globalization):-

वैश्वीकरण एक आर्थिक प्रणाली है और व्यक्तियों सामानों और नौकरियों का एक देश से दूसरे देश तक के स्थानांतरण को वैश्वीकरण कहते हैं ।

वैश्विक दुनिया के निर्माण को समझने के लिए हमें व्यापार के इतिहास, प्रवासन और लोगों को काम की तलाश और राजधानियों की आवाजाही को समझना होगा ।

भूमंडलीकरण:-

दुनिया भर में आर्थिक , सांस्कृतिक , राजनीतिक , धार्मिक और सामाजिक प्रणालियों का एकीकरण । इसका मतलब यह है कि वस्तुओं और सेवाओं , पूंजी और श्रम का व्यापार दुनिया भर में किया जाता है , देशों के बीच सूचना और शोध के परिणाम आसानी से प्रवाहित होते हैं ।

❖ आधुनिक युग से पहले की यात्राएँ:- 

3000 ईसा पूर्व , एक सक्रिय तटीय व्यापार ने सिंधु घाटी की सभ्यताओं को वर्तमान पश्चिम एशिया के साथ जोड़ा ।

जब हम ‘वैश्वीकरण’ की बात करते हैं तो आमतौर पर हम एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था की बात करते हैं जो मोटे तौर पर पिछले लगभग पचास सालों में ही हमारे सामने आई है।

❒ भूमंडलीकृत विश्व के बनने की प्रक्रिया –

➤ व्यापार का काम की तलाश में एक जगह से दुसरी जगह जाते लोगों का, पूँजी व बहुत सारी चीजों की वैश्विक आवाजाही का एक लंबा इतिहास रहा है।

➤ वर्तमान के वैश्विक संबंधों को देखकर सोचना पड़ता है कि यह दुनिया के संबंध किस प्रकार बने। इतिहास के हर दौर में मानव समाज एक दूसरे के ज्यादा नजदीक आते गए हैं।

➤ प्राचीन काल से ही यात्री, व्यापारी, एक पुजारी और तीर्थयात्री ज्ञान, अवसरों और आध्यात्मिक शांति के लिए या उत्पीड़न  (यातनापूर्ण) जीवन से बचने के लिए दूर-दूर की यात्राओं पर जाते रहे हैं।

➤ अपनी यात्राओं में ये लोग तरह तरह की चीजें, पैसा, मूल्य-मान्यताएँ, हुनर, विचार, आविष्कार और यहाँ तक कि कीटाणु और बीमारियाँ भी साथ लेकर चलते रहे हैं।

➤ 3000 ईसा पूर्व में समुद्री तटों पर होने वाले व्यापार के माध्यम से सिंधु घाटी की सभ्यता उस इलाके से भी जुड़ी हुई थी जिसे आज हम पश्चिमी एशिया के नाम से जानते हैं।

➤ हज़ार साल से भी ज्यादा समय से मालदीव के समुद्र में पाई जाने वाली कौड़ियाँ (जिन्हें पैसे या मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाता था) चीन और पूर्वी अफ्रीका तक पहुँचती रही हैं।

➤ बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं का दूर-दूर तक पहुँचने का इतिहास भी सातवीं सदी तक ढूँढ़ा जा सकता है। तेरहवीं सदी के बाद तो इनके प्रसार को निश्चय ही साफ देखा जा सकता है।

रेशम मार्ग (सिल्क रूट):-

सिल्क रूट ( रेशम मार्ग ) एक ऐतिहासिक व्यापार मार्ग था जो कि दूसरी शताब्दी ई० पू० से 14 वीं शताब्दी तक , यह चीन , भारत , फारस , अरब , ग्रीस और इटली को पीछे छोड़ते हुए एशिया से भूमध्यसागरीय तक फैला था । उस दौरान हुए भारी रेशम व्यापार के कारण इसे सिल्क रूट करार दिया गया था ।

➤ ‘सिल्क मार्ग’ नाम से पता चलता है कि इस मार्ग से पश्चिम को भेजे जाने वाले चीनी रेशम (सिल्क) का कितना महत्त्व था।

➤ जमीन या समुद्र से होकर गुजरने वाले ये रास्ते न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करते थे बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे।

➤ ऐसे मार्ग ईसा पूर्व के समय में ही सामने आ चुके थे और लगभग पंद्रहवीं शताब्दी तक अस्तित्व में थे।

➤ रेशम मार्ग से चीनी पॉटरी जाती थी और इसी रास्ते से भारत व दक्षिण-पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले दुनिया के दूसरे भागों में पहुँचते थे।

सिल्क मार्ग :- ये मार्ग एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के साथ – साथ विश्व को जमीन और समुद्र मार्ग से जोड़ते थे। सिल्क रूट के रास्ते ही ईसाई , इस्लाम और बौद्ध धर्म दुनिया के विभिन्न भागों में पहुँच पाए थे। रेशम मार्गों को दुनिया के सबसे दूर के हिस्सों को जोड़ने वाला सबसे महत्वपूर्ण मार्ग माना जाता था ।

भोजन की यात्रा (स्पैघेत्ती और आलू) :-

स्पैघेत्ती :-

नूडल चीन की देन है जो वहाँ से दुनिया के दूसरे भागों तक पहुँचा । भारत में हम इसके देशी संस्करण सेवियों को वर्षों से इस्तेमाल करते हैं । इसी नूडल का इटैलियन रूप है स्पैघेत्ती ।

➤ नूडल्स चीन से पश्चिम में पहुँचे और वहाँ उन्हीं से स्पैघेत्ती (पास्ता) का जन्म हुआ।

आज के कई आम खाद्य पदार्थ ; जैसे आलू , मिर्च टमाटर , मक्का , सोया , मूंगफली और शकरकंद यूरोप में तब आए जब क्रिस्टोफर कोलंबस ने गलती से अमेरिकी महाद्वीपों को खोज निकाला ।

ये खाद्य पदार्थ यूरोप और एशिया में तब पहुँचे जब क्रिस्टोफर कोलंबस गलती से 1492 में उन अज्ञात महाद्वीपों में पहुँच गया था जिन्हें बाद में अमेरिका के नाम से जाना जाने लगा।

आलू :-

आलू के आने से यूरोप के लोगों की जिंदगी में भारी बदलाव आए । आलू के आने के बाद ही यूरोप के लोग इस स्थिति में आ पाए कि बेहतर खाना खा सकें और अधिक दिन तक जी सकें ।

आयरलैंड के किसान आलू पर इतने निर्भर हो चुके थे कि 1840 के दशक के मध्य में किसी बीमारी से आलू की फसल तबाह हो गई तो कई लाख लोग भूख से मर गए । उस अकाल को आइरिस अकाल के नाम से जाना जाता है ।

❖ बिमारी से विजय प्राप्त करना –

➤ सोलहवीं सदी के मध्य तक आते आते पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं की विजय का सिलसिला शुरू हो चुका था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था।

➤ यूरोपीय सेनाएँ केवल अपनी सैनिक ताकत के दम पर नहीं जीतती थीं।

➤ स्पेनिश विजेताओं के सबसे शक्तिशाली हथियारों में परंपरागत किस्म का सैनिक हथियार तो कोई था ही नहीं। यह हथियार तो चेचक जैसे कीटाणु थे जो स्पेनिश सैनिकों और अफसरों के साथ वहाँ जा पहुँचे थे।

➤ लाखों साल से दुनिया से अलग-थलग रहने के कारण अमेरिका के लोगों के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी। फलस्वरूप, इस नए स्थान पर चेचक बहुत मारक साबित हुई।

➤ एक बार संक्रमण शुरू होने के बाद तो यह बीमारी पूरे महाद्वीप में फैल गई ।

➤ जहाँ यूरोपीय लोग नहीं पहुँचे थे वहाँ के लोग भी इसकी चपेट में आने लगे।

➤ चेचक की बीमारी ने पूरे के पूरे समुदायों को खत्म कर डाला। इस तरह घुसपैठियों की जीत का रास्ता आसान होता चला गया। बंदूकों को तो खरीद कर या छीन कर हमलावरों के ख़िलाफ भी इस्तेमाल किया जा सकता था।

➤ चेचक जैसी बीमारियों के मामले में तो ऐसा नहीं किया जा सकता था क्योंकि हमलावरों के पास उससे बचाव का तरीका भी था और उनके शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमता भी विकसित हो चुकी थी।

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❖ अमेरिका में बाहरी लोगों का आगमन:- 

➤ उन्नीसवीं सदी तक यूरोप में गरीबी और भूख का ही साम्राज्य था। शहरों में बेहिसाब भीड़ थी और बीमारियों का बोलबाला था। धार्मिक टकराव आम थे। धार्मिक असंतुष्टों को कड़ा दंड दिया जाता था। इस वजह से हजारों लोग यूरोप से भागकर अमेरिका जाने लगे।

➤ अठारहवीं सदी तक अमेरिका में अफ्रीका से पकड़ कर लाए गए गुलामों को काम में झोंक कर यूरोपीय बाजारों के लिए कपास और चीनी का उत्पादन किया जाने लगा था।

➤ अठारहवीं शताब्दी का काफी समय बीत जाने के बाद भी चीन और भारत को दुनिया के सबसे धनी देशों में गिना जाता था। एशियाई व्यापार में भी उन्हीं का दबदबा था।

➤ विशेषज्ञों का मानना है कि पंद्रहवीं सदी से चीन ने दूसरे देशों के साथ अपने संबंध कम करना शुरू कर दिए और वह दुनिया से अलग-थलग पड़ने लगा।

➤ चीन की घटती भूमिका और अमेरिका के बढ़ते महत्त्व के चलते विश्व व्यापार का केंद्र पश्चिम की ओर खिसकने लगा। अब यूरोप ही विश्व व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र बन गया।

❖ 19वीं शताब्दी का विश्व (1815 -1914):- 

➤ उन्नीसवीं सदी में दुनिया तेजी से बदलने लगी। आर्थिक, राजनीतिक,सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी कारकों ने पूरे के पूरे समाजों की कायापलट कर दी और विदेश संबंधों को नए ढर्रे में ढाल दिया।

➤ अर्थशास्त्रिायों ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह की गतियों या ‘प्रवाहों’ का उल्लेख किया है।

➤ व्यापार प्रवाह – व्यापार प्रवाह जो उन्नीसवीं सदी में मुख्य रूप से वस्तुओं (जैसे कपड़ा या गेहूँ आदि) के व्यापार तक ही सीमित था।

➤ श्रम का प्रवाह – इसमें लोग काम या रोजगार की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं।

➤ प्रवाह पूँजी – जिसे अल्प या दीर्घ अवधि के लिए दूर-दराज के इलाकों में निवेश कर दिया जाता है।

➤ ये तीनों तरह के प्रवाह एक-दूसरे से जुड़े हुए थे और लोगों के जीवन को प्रभावित करते थे।

➤ कभी – कभी इन कारकों के बीच मौजूद संबंध टूट भी जाते थे।

➤ उदाहरण के लिए, वस्तुओं या पूँजी की आवाजाही के मुकाबले श्रमिकों की आवाजाही पर प्रायः ज्यादा शर्तें और बंदिशें लगाई जाती थीं।

➤ 1885 में यूरोप की बड़ी शक्तियाँ बर्लिन में मिलीं और अफ्रिकी महादेश को आपस में बाँट लिया । इस तरह से अफ्रिका के ज्यादातर देशों की सीमाएँ सीधी रेखाओं में बन गईं ।

यूरोप में समस्याएँ :-

उन्नीसवीं सदी तक यूरोप में कई समस्याएँ थीं ; जैसे गरीबी , बीमारी और धार्मिक टकराव । धर्म के खिलाफ बोलने वाले कई लोग सजा के डर से अमेरिका भाग गए थे । उन्होंने अमेरिका में मिलने वाले अवसरों का भरपूर इस्तेमाल किया और इससे उनकी काफी तरक्की हुई ।

अठारहवीं सदी तक भारत और चीन:-

अठारहवीं सदी तक भारत और चीन दुनिया के सबसे धनी देश हुआ करते थे । लेकिन पंद्रहवीं सदी से ही चीन ने बाहरी संपर्क पर अंकुश लगाना शुरु किया था और दुनिया के बाकी हिस्सों से अलग थलग हो गया था । चीन के घटते प्रभाव और अमेरिका के बढ़ते प्रभाव के कारण विश्व के व्यापार का केंद्रबिंदु यूरोप की तरफ शिफ्ट कर रहा था ।

विश्व अर्थव्यवस्था का उदय :-

➤ आइए इन तीनों को समझने के लिए ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर नजर डालें ।

➤ 18 वीं सदी के आखिरी दशक तक ब्रिटेन में “ कॉर्न लॉ ” था ।

➤ कॉर्न लॉ :- कार्न ला वह कानून जिसके सहारे सरकार ने मक्का के आयात पर पाबंदी लगा दी थी ।

➤ कुछ दिन बाद ब्रिटेन में जनसंख्या का बहुत ज्यादा बढ़ गई , जैसे ही जनसंख्या बढ़ी भोजन की मांग में वृद्धि हो गई ।

➤ भोजन की मांग बढ़ी तो कृषि आधारित सामानों में भी वृद्धि हो गई।

➤ इससे पहले की ब्रिटेन में भुखमरी आती , सरकार ने कॉर्न लॉ को समाप्त कर दिया ।

➤ जिस से अलग अलग देश के व्यापारियों ने ब्रिटेन में भोजन का निर्यात किया ।

➤ भोजन की कमी में बदलाव आया और विकास होने लगा ।

कॉर्न लॉ के समय :-

➤ भोजन की मांग बढ़ी

➤ जनसंख्या बढ़ी

➤ भोजन के दाम बढ़े

कॉर्न लॉ हटाने के बाद :-

➤ व्यापार में वृद्धि

➤ विकास का तेज होना

➤ भोजन का अधिक भंडार

रिंडरपेस्ट या मवेशी प्लेग :-

रिंडरपेस्ट :- रिंडरपेस्ट प्लेग की भाँति फैलने वाली मवेशियों की बीमारी थी । वह बीमारी 1890 ई० के दशक में अफ्रीका में बड़ी तेजी से फैली ।

रिंडरपेस्ट का प्रकोप :-

रिंडरपेस्ट का अफ्रिका में आगमन 1880 के दशक के आखिर में हुआ था । यह बीमारी उन घोड़ों के साथ आई थी जो ब्रिटिश एशिया से लाए गए थे । ऐसा उन इटैलियन सैनिकों की मदद के लिए किया गया था जो पूर्वी अफ्रिका में एरिट्रिया पर आक्रमण कर रहे थे ।

रिंडरपेस्ट पूरे अफ्रिका में किसी जंगल की आग की तरह फैल गई । 1892 आते आते यह बीमारी अफ्रिका के पश्चिमी तट तक पहुँच चुकी थी । इस दौरान रिंडरपेस्ट ने अफ्रिका के मवेशियों की आबादी का 90 % हिस्सा साफ कर दिया ।

अफ्रिकियों के लिए मवेशियों का नुकसान होने का मतलब था रोजी रोटी पर खतरा । अब उनके पास खानों और बागानों में मजदूरी करने के अलावा और कोई चारा नहीं था । इस तरह से मवेशियों की एक बीमारी ने यूरोपियन को अफ्रिका में अपना उपनिवेश फैलाने में मदद की| 

1900 के दशक से भारत के राष्ट्रवादी लोग बंधुआ मजदूर के सिस्टम का विरोध करने लगे थे । इस सिस्टम को 1921 में समाप्त कर दिया गया| 

विदेशों में भारतीय  उघमी :-

भारत के नामी बैंकर और व्यवसायियों में शिकारीपुरी श्रौफ और नटुकोट्टई चेट्टियार का नाम आता है । वे दक्षिणी और केंद्रीय एशिया में कृषि निर्यात में पूँजी लगाते थे । भारत में और विश्व के विभिन्न भागों में पैसा भेजने के लिए उनका अपना ही एक परिष्कृत सिस्टम हुआ करता था ।

भारत के व्यवसायी और महाजन उपनिवेशी शासकों के साथ अफ्रिका भी पहुंच चुके थे । हैदराबाद के सिंधी व्यवसायी तो यूरोपियन उपनिवेशों से भी आगे निकल गये थे । 1860 के दशक तक उन्होंने पूरी दुनिया के महत्वपूर्ण बंदरगाहों फलते फूलते इंपोरियम भी बना लिये थे ।

भारतीय व्यापार, उपनिवेश और वैश्विक व्यवस्था :-

भारत से उम्दा कॉटन के कपड़े वर्षों से यूरोप निर्यात होता रहे थे । लेकिन इंडस्ट्रियलाइजेशन के बाद स्थानीय उत्पादकों ने ब्रिटिश सरकार को भारत से आने वाले कॉटन के कपड़ों पर प्रतिबंध लगाने के लिए बाध्य किया ।

इससे ब्रिटेन में बने कपड़े भारत के बाजारों में भारी मात्रा में आने लगे । 1800 में भारत के निर्यात में 30 % हिस्सा कॉटन के कपड़ों का था । 1815 में यह गिरकर 15 % हो गया और 1870 आते आते यह 3 % ही रह गया । लेकिन 1812 से 1871 तक कच्चे कॉटन का निर्यात 5 % से बढ़कर 35 % हो गया । इस दौरान निर्यात किए गए सामानों में नील ( इंडिगो ) में तेजी से बढ़ोतरी हुई । भारत से सबसे ज्यादा निर्यात होने वाला सामान था अफीम जो मुख्य रूप से चीन जाता था ।

❖ वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था का भारत में प्रभाव

➤ बहुत छोटे पैमाने पर ही सही लेकिन इसी तरह के नाटकीय बदलाव हम पंजाब मे  देख सकते हैं।

➤ यहाँ ब्रिटिश भारतीय सरकार ने अर्द्ध-रेगिस्तानी परती जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का जाल बिछा दिया ताकि निर्यात के लिए गेहूँ और कपास की खेती की जा सके।

❒ केनाल कॉलोनी – केनाल कॉलोनी नयी नहरों की सिंचाई वाले इलाकों में पंजाब के अन्य स्थानों के लोगों को लाकर बसाया गया। उनकी बस्तियों को केनाल कॉलोनी (नहर बस्ती) कहा जाता था।

➤ कपास की भी दुनिया भर में बड़े पैमाने पर खेती की जाने लगी थी ताकि ब्रिटिश कपड़ा मिलों की माँग को पूरा किया जा सके।

➤ रबड़ की कहानी भी इससे अलग नहीं है।

➤ विभिन्न चीजों के उत्पादन में विभिन्न इलाकों ने इतनी महारत हासिल कर ली थी कि 1820 से 1914 के बीच विश्व व्यापार में 25 से 40 गुना वृद्धि हो चुकी थी।

➤ इस व्यापार में लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा ‘प्राथमिक उत्पादों’ यानी गेहूँ और कपास जैसे कृषि उत्पादों तथा कोयले जैसे खनिज पदार्थों का था।

युद्धकालीन रूपांतरण :-

पहले विश्व युद्ध ने पूरी दुनिया को कई मायनों में झकझोर कर रख दिया था । लगभग 90 लाख लोग मारे गए और 2 करोड़ लोग घायल हो गये ।

मरने वाले या अपाहिज होने वालों में ज्यादातर लोग उस उम्र के थे जब आदमी आर्थिक उत्पादन करता है । इससे यूरोप में सक्षम शरीर वाले कामगारों की भारी कमी हो गई । परिवारों में कमाने वालों की संख्या कम हो जाने के कारण पूरे यूरोप में लोगों की आमदनी घट गई ।

ज्यादातर पुरुषों को युद्ध में शामिल होने के लिए बाध्य होना पड़ा लिहाजा कारखानों में महिलाएं काम करने लगीं । जो काम पारंपरिक रूप से पुरुषों के काम माने जाते थे उन्हें अब महिलाएँ कर रहीं थीं ।

इस युद्ध के बाद दुनिया की कई बड़ी आर्थिक शक्तियों के बीच के संबंध टूट गये । ब्रिटेन को युद्ध के खर्चे उठाने के लिए अमेरिका से कर्ज लेना पड़ा । इस युद्ध ने अमेरिका को एक अंतर्राष्ट्रीय कर्जदार से अंतर्राष्ट्रीय साहूकार बना दिया । अब विदेशी सरकारों और लोगों की अमेरिका में संपत्ति की तुलना मंअ अमेरिकी सरकार और उसके नागरिकों की विदेशों में ज्यादा संपत्ति थी ।

महामंदी :-

➤ महामंदी की शुरूआत 1929 से हुई और यह संकट 30 के दशक के मध्य तक बना रहा । इस दौरान विश्व के ज्यादातर हिस्सों में उत्पादन , रोजगार , आय और व्यापार में बहुत बड़ी गिरावट दर्ज की गई ।

➤ युद्धोतर अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर हो गई थी । कीमतें गिरीं तो किसानों की आय घटने लगी और आमदनी बढ़ाने के लिए किसान अधिक मात्रा में उत्पादन करने लगे ।

➤ बहुत सारे देशों ने अमेरिका से कर्ज लिया। अमेरिकी उद्योगपतियों ने मंदी की आशंका को देखते हुए यूरोपीय देशों को कर्ज देना बन्द कर दिया। हजारों बैंक दिवालिया हो गये ।

भारत और महामंदी :-

➤ 1928 से 1934 के बीच देश का आयात निर्यात घट कर आधा रह गया ।

➤ अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतें गिरने से भारत में गेहूँ की कीमत 50 प्रतिशत तक गिर गई ।

➤ किसानों और काश्तकारों को ज्यादा नुकसान हुआ ।

➤ महामंदी शहरी जनता एवं अर्थव्यवस्था के लिए भी हानिकारक ।

➤ 1931 में मंदी चरम सीमा पर थी जिसके कारण ग्रामीण भारत असंतोष व उथल – पुथल के दौर से गुजर रहा था ।

विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण : युद्धोत्तर काल

युद्ध के बाद के समझौते :-

दूसरा विश्व युद्ध पहले के युद्धों की तुलना में बिलकुल अलग था । इस युद्ध में आम नागरिक अधिक संख्या में मारे गये थे और कई महत्वपूर्ण शहर बुरी तरह बरबाद हो चुके थे । दूसरे विश्व युद्ध के बाद की स्थिति में सुधार मुख्य रूप से दो बातों से प्रभावित हुए थे ।

पश्चिम में अमेरिका का एक प्रबल आर्थिक , राजनैतिक और सामरिक शक्ति के रूप में उदय ।
सोवियत यूनियन का एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से विश्व शक्ति के रूप में परिवर्तन ।

विश्व के नेताओं की मीटिंग हुई जिसमें युद्ध के बाद के संभावित सुधारों पर चर्चा की गई । उन्होंने दो बातों पर ज्यादा ध्यान दिया जिन्हें नीचे दिया गया है । औद्योगिक देशों में आर्थिक संतुलन को बरकरार रखना और पूर्ण रोजगार दिलवाना। पूँजी , सामान और कामगारों के प्रवाह पर बाहरी दुनिया के प्रभाव को नियंत्रित करना ।

ब्रेटन – वुड्स समझौता :-

1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी ।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की स्थापना हुई। ब्रेटन वुड्स व्यवस्था निश्चित विनिमय दरों पर आधारित होती थी ।

बहुराष्ट्रीय कंपनियां :-

बहुराष्ट्रीय निगम बड़ी कंपनियां हैं जो एक ही समय में कई देशों में काम करती हैं । एमएनसी का विश्व व्यापी प्रसार 1950 और 1960 के दशक में एक उल्लेखनीय विशेषता थी क्योंकि दुनिया भर में अमेरिकी व्यापार का विस्तार हुआ था। विभिन्न सरकारों द्वारा लगाए गए उच्च आयात शुल्क ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी विनिर्माण इकाइयों का पता लगाने के लिए मजबूर किया ।

वीटो :-

➤ एक कानून या निकाय द्वारा किए गए प्रस्ताव को अस्वीकार करने का संवैधानिक अधिकार ।

❖ सांस्कृतिक समागम से वैश्विक दुनिया का उदय

➤ सांस्कृतिक समागम के ये स्वरूप एक नयी वैश्विक दुनिया के उदय की प्रक्रिया का अंग थे। यह ऐसी प्रक्रिया थी जिसमें अलग-अलग स्थानों की चीजें आपस में घुल-मिल जाती थी, उनकी मूल पहचान और विशिष्टताएँ गुम हो जाती थीं और बिलकुल नया रूप सामने आता था।

➤ ज्यादातर अनुबंधित श्रमिक अनुबंध समाप्त हो जाने के बाद भी वापस नहीं लौटे। जो वापस लौटे उनमें से भी अधिकांश केवल कुछ समय यहाँ बिता कर फिर अपने नए ठिकानों पर वापस चले गए।

➤ इसी कारण इन देशों में भारतीय मूल के लोगों की संख्या बहुत ज्यादा पाई जाती है। जैसे आपने नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार वी. एस. नायपॉल का नाम सुना होगा।

➤ वेस्ट इंडीज के क्रिकेट खिलाड़ी शिवनरैन चंद्रपॉल और रामनरेश सरवन का नाम भी हम भारतीयों जैसें है इस बात का भी यही कारण है कि वे भारत से गए अनुबंधित मजदूरों के ही वंशज हैं।

➤ बीसवीं सदी के शुरुआती सालों से ही हमारे देश के राष्ट्रवादी नेता इस दास (गिरमिटिया मजदुर) प्रथा का विरोध करने लगे थे।

➤ उनकी राय में यह बहुत अपमानजनक और क्रूर व्यवस्था थी। इसी दबाव के कारण 1921 में इसे खत्म कर दिया गया लेकिन इसके बाद भी कई दशक तक भारतीय अनुबंधित मजदूरों के वंशज कैरीबियाई द्वीप समूह में बेचैन अल्पसंख्यकों का जीवन जीते रहे।

➤ वहाँ के लोग उन्हें ‘कुली’ मानते थे और उनके साथ कुलियों जैसा बर्ताव करते थे। नायपॉल के कुछ प्रारंभिक उपन्यासों में विद्रोह और परायेपन के इस अहसास को खूब देखा जा सकता है।

❖ भारत से सोने चाँदी का निर्यात:- 

➤ भारत से सोने चाँदी का निर्यात ने ब्रिटेन की आर्थिक दशा सुधारने में तो निश्चय की मदद दी लेकिन भारतीय किसानों को कोई लाभ नहीं हुआ।

➤ 1931 में मंदी अपने चरम पर थी और ग्रामीण भारत असंतोष व उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था। उसी समय महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा (सिविल नाफरमानी) आंदोलन शुरू किया।

➤ यह मंदी शहरी भारत के लिए इतनी दुखदाई नहीं रही।

➤ कीमतें गिर जाने के बावजूद शहरों मे रहने वाले ऐसे लोगों की हालत ठीक रही जिनकी आय निश्चित थी। जैसे, शहर में रहने वाले जमींदार जिन्हें अपनी जमीन पर बँधा-बँधाया भाड़ा मिलता था, या मध्यवर्गीय वेतनभोगी कर्मचारी।

➤ राष्ट्रवादी खेमे के दबाव में उद्योगों की रक्षा के लिए सीमा शुल्क बढ़ा दिए गए थे जिससे औद्योगिक क्षेत्र में भी निवेश में तेजी आई।

❖ अनौपनिवेशीकरण और स्वतंत्रता:- 

➤ दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद भी दुनिया का एक बहुत बड़ा भाग यूरोपीय औपनिवेशिक शासन के अधीन था। अगले दो दशकों में एशिया और अफ्रीका के ज्यादातर उपनिवेश स्वतंत्र, स्वाधीन राष्ट्र बन चुके थे।

➤ ये सभी देश गरीबी व संसाधनों की कमी से जूझ रहे थे। उनकी अर्थव्यवस्थाएँ और समाज लंबे समय तक चले औपनिवेशिक शासन के कारण अस्त-व्यस्त हो चुके थे।

➤ आई.एम.एफ. और विश्व बैंक का गठन तो औद्योगिक देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही किया गया था। ये संस्थान भूतपूर्व उपनिवेशों में गरीबी की समस्या और विकास की कमी से निपटने में दक्ष नहीं थे। लेकिन जिस प्रकार यूरोप और जापान ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं का पुनर्गठन किया था उसके कारण ये देश आई.एम.एफ. और विश्व बैंक पर बहुत निर्भर भी नहीं थे।

➤ इसी कारण पचास के दशक के आखिरी सालों में आकर ब्रेटन वुड्स संस्थान विकासशील देशों पर भी पहले से ज्यादा ध्यान देने लगे।

➤ दुनिया के अल्पविकसित भाग उपनिवेशों के रूप में पश्चिमी साम्राज्यों के अधीन रहे थे। विडंबना यह थी कि नवस्वाधीन राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं पर भूतपूर्व औपनिवेशिक शक्तियों का ही नियंत्रण बना हुआ था।

➤ जो देश ब्रिटेन और फ्रांस के उपनिवेश रह चुके थे या जहाँ कभी उनका राजनीतिक प्रभुत्व रह चुका वहाँ के महत्वपूर्ण संसाधनों, जैसे खनिज संपदा और जमीन पर अभी भी ब्रिटिश और फ्रांसीसी कंपनियों का ही नियंत्रण था और वे इस नियंत्रण को छोड़ने के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं थीं।

➤ कई बार अमेरिका जैसे अन्य शक्तिशाली देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी विकासशील देशों के प्राकृतिक संसाधनों का बहुत कम कीमत पर दोहन करने लगती थीं।

➤ G-77 देशों का समुह – ज्यादातर विकासशील देशों को पचास और साठ के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की तेज प्रगति से कोई लाभ नहीं हुआ। इस समस्या को देखते हुए विकासशील देशों ने  एक नयी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणली (एन.आई.ई.ओ) प्रणाली के लिए आवाज उठाई और समूह 77 (जी -77) के रूप में संगठित हो गए।

➤ एन.आई.ई.ओ. से उनका आशय एक ऐसी व्यवस्था से था जिसमें उन्हें अपने संसाधनों पर सही मायनों में नियंत्रण मिल सके, जिसमें उन्हें विकास के लिए अधिक सहायता मिले, कच्चे माल क सही दाम मिलें, और अपने तैयार मालों को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए बेहतर पहुँच मिले।

❖ बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ का उद्भव:- 

➤ सत्तर के दशक के मध्य से बेरोजगारी बढ़ने लगी। नब्बे के दशक के प्रांरभिक वर्षों तक वहाँ काफी बेरोजगारी रही। सत्तर के दशक के आखिर सालों से बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी एशिया के ऐसे देशों में उत्पादन केंद्रित करने लगी जहाँ वेतन कम थे।

➤ चीन 1949 की क्रांति के बाद विश्व अर्थव्यवस्था से अलग-थलग ही था। परंतु चीन में नयी आर्थिक नीतियों और सोवियत खेमे के बिखराव तथा पूर्वी यूरोप में सोवियत शैली की व्यवस्था समाप्त हो जाने के पश्चात बहुत सारे देश दोबारा विश्व अर्थव्यवस्था का अंग बन गए।

➤ चीन जैसे देशों में वेतन तुलनात्मक रूप से कम थे। फलस्वरूप विश्व बाजारों पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने वहाँ जमकर निवेश करना शुरू कर दिया।

➤ हमारे ज्यादातर टेलीविजन, मोबाईल फोन और खिलौने चीन में बने होते है या वहाँ के जैसे ही लगते हैं।

➤ यह चीनी अर्थव्यवस्था की अल्प लागत अर्थव्यवस्था और खास तौर से वहाँ के कम वेतनों का नतीजा है।

➤ उद्योगों को कम वेतन वाले देशों में ले जाने से वैश्विक व्यपार और पूँजी प्रवाहों पर भी असर पड़ा।

➤ पिछले दो दशक में भारत, चीन और ब्राजील आदि देशों की अर्थव्यवस्थाओं में आए भारी बदलावों के कारण दुनिया का आर्थिक भूगोल पूरी तरह बदल चुका है।


Class 10 History Chapter 3  Important Question Answer

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01 . ब्रेटन वुड्स समझौते का क्या अर्थ है ?

उत्तर ⇒ युद्ध के बाद की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक दुनिया में आर्थिक स्थिरता और पूर्ण रोजगार को बनाए रखना था। संयुक्त राष्ट्र के न्यू हैम्पशायर में ब्रेटन वुड्स में जुलाई 1944 में आयोजित संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन ने इसके ढांचे पर सहमति व्यक्त की। ब्रेटन वुड्स सम्मेलन ने निम्नलिखित संस्थाओं की स्थापना की:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष: इसका उद्देश्य अपने सदस्य देशों के बाहरी अधिशेषों और घाटे से निपटना था। पनर्निर्माण और विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक या विश्व बैंक की स्थापना “युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण के वित्तपोषण के लिए” की गई थी। उपरोक्त संस्थानों को ब्रेटन वुड्स संस्थान या ब्रेटन वुड्स जुड़वाँ के रूप में जाना जाता है। युद्ध के बाद की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली को अक्सर ब्रेटन वुड्स प्रणाली के रूप में भी वर्णित किया जाता है। यह निश्चित विनिमय दरों पर आधारित था। राष्ट्रीय मुद्राओं को एक निश्चित विनिमय दर पर डॉलर से आंका गया था। 

02. डॉलर प्रति औंस सोने की निश्चित कीमत पर डॉलर ही सोने पर टिका हुआ था।

उत्तर ⇒ इन संस्थानों में निर्णय लेने की प्रक्रिया को पश्चिमी औद्योगिक शक्तियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। आईएमएफ और विश्व बैंक के प्रमुख फैसलों पर अमेरिका के पास वीटो का प्रभावी अधिकार है।

 03. भोजन की उपलब्धता पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दीजिए।

उत्तर ⇒ (i) विभिन्न बाजारों में सस्ते भोजन की उपलब्धता: परिवहन में सुधार; तेज़ रेलवे, हल्के वैगन और बड़े जहाजों ने भोजन को अधिक सस्ते में और तेज़ी से दूर के खेतों से अंतिम बाजारों तक पहुँचाने में मदद की।

(ii) मांस पर प्रभाव: 1870 के दशक तक, अमेरिका से मांस को जीवित पशुओं के रूप में यूरोप भेजा जाता था और फिर यूरोप में उनका वध कर दिया जाता था। लेकिन जीवित जानवरों ने जहाज़ में काफी जगह घेर ली। लेकिन प्रशीतित जहाजों के आविष्कार ने मांस को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ले जाना संभव बना दिया। अब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या न्यूजीलैंड में जानवरों का वध किया जाता था और फिर जमे हुए मांस के रूप में यूरोप भेजा जाता था। प्रशीतित जहाज के आविष्कार के निम्नलिखित लाभ थे:

इससे शिपिंग लागत कम हो गई और यूरोप में मांस की कीमतें कम हो गईं।
यूरोप में गरीब अब अधिक विविध आहार का उपभोग कर सकते थे।
पहले, रोटी और आलू की एकरसता के लिए कई, सभी नहीं, मांस, मक्खन और अंडे जोड़ सकते थे।
बेहतर रहने की स्थिति ने देश के भीतर सामाजिक शांति को बढ़ावा दिया और विदेशों में साम्राज्यवाद को समर्थन दिया।

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 04. महामंदी के कारणों की व्याख्या करें।

अथवा,

1929 की आर्थिक मन्दी के परिणामों की व्याख्या करें।

उत्तर ⇒ 1929 में विश्व आर्थिक मंदी की लपेट में आ गया। इस मंदी का आरंभ संयुक्त राज्य अमेरिका से हुआ। महामंदी के मुख्य कारण निम्नलिखित थे:

( क ) अति उत्पादनः  कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन की समस्या बनी हुई थी। कृषि उत्पादों की गिरती कीमतों के कारण स्थिति और खराब हो गई थी। कीमतें गिरने से किसानों की आय घटने लगी। अतः वे आय बढ़ाने के लिए पहले से अधिक उत्पादन करने लगे। वे सोचते थे कि भले ही उन्हें अपना उत्पादन कम कीमत पर बेचना पड़े, अधिक माल बेचकर वे अपना आय स्तर बनाए रख सकेंगे। फलस्वरूप बाज़ार में कृषि उत्पादों की बाढ़ आ गई तथा कीमतें और भी कम हो गईं। खरीददारों के अभाव में कृषि उपज पड़ी पड़ी सड़ने लगी।

(ख) शेयरों के मूल्य में गिरावट:  शेयरों के भाव एकदम गिर गए। कुछ कंपनियों के शेयरों का मूल्य तो बिल्कुल समाप्त हो गया। परिणामस्वरूप जिन लोगों का शेयरों में धन लगा था, उन्हें भारी क्षति उठानी पड़ी।

(ग) बैंकों का बंद होना:  देश के हज़ारों बैंक बंद हो गए और कारखानेदारों को कारखानों में लगाने के लिए पूँजी न मिल सकी। परिणाम यह हुआ कि कारखाने एकाएक बंद होने लगे और लोगों में बेरोजगारी बढ़ने लगी।

(घ) बेरोज़गारी:  बेरोज़गारी के कारण लोगों की क्रय-शक्ति और भी कम हो गई जिसका पूरा प्रभाव तैयार माल की बिक्री पर पड़ा। धीरे-धीरे विश्व के अन्य पूँजीवादी देशों में भी यही दुश्चक्र चल पड़ा। इस प्रकार आर्थिक मंदी ने गंभीर रूप धारण कर लिया।

05. संक्षेप में बताएँ कि दो महायुद्धों के बीच जो आर्थिक परिस्थितियाँ पैदा हुईं उनसे अर्थशास्त्रियों तथा राजनेताओं ने क्या सबक सीखे ?

उत्तर ⇒ दो महायुद्धों के बीच संसार को भीषण आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा जिससे बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी फैल गई। अनेक कारखाने तथा बैंक बंद हो गए और शेयर बाज़ार धराशायी हो गया। इससे अर्थशास्त्रियों तथा राजनेताओं ने यह सबक सीखा कि अति उत्पादन बहुत ही खतरनाक है।

06. जब हम कहते हैं कि सोलहवीं सदी में दुनिया ‘सिकुड़ने लगी थी तो इस क्या मतलब है ?

उत्तर ⇒ इसका मतलब यह है कि सोलहवीं सदी में संसार के देश एक-दूसरे के निकट आने लगे थे। उनके बीच आपसी आदान-प्रदान बढ़ गया था। इस प्रकार वे एक-दूसरे पर निर्भर हो गए थे।

07. खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दें।

उत्तर ⇒ (क) मांस का निर्यातः खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को देखने के लिए मांस व्यापार सबसे अच्छा उदाहरण है। तकनीक के अभाव में जीवित जानवरों का निर्यात किया जाता था। यह एक जटिल प्रक्रिया थी तथा इसमें अनेक समस्याएँ थीं, जैसे- जानवरों का वज़न कम हो जाना, मार्ग में उनका बीमार पड़ जाना अथवा मर जाना इत्यादि । परंतु तकनीक के विकास ने जहाजों को ठंडा (रेफ्रिजरेशन) रखना आसान बना दिया। फलस्वरूप जीवित जानवरों के स्थान पर अब उनका खाने योग्य मांस ही यूरोप में भेजा जाने लगा। इससे परिवहन खर्च में कमी आ गई और विदेशों में मांस सस्ता मिलने लगा।

(ख) विभिन्न खाद्य-पदार्थों का आदान-प्रदानः तकनीकी विकास से पूर्व विश्व के लगभग सभी राष्ट्र आत्मनिर्भर थे। परंतु तकनीकी विकास से परिवहन के संसाधनों का तेजी

से विकास हुआ। इसके कारण लोग विभिन्न देशों में आने-जाने लगे। वे अपने साथ विभिन्न प्रकार की फसलें ले जाते थे। उदाहरण के लिए आलू, सोया, मूँगफली, मक्का, टमाटर आदि यूरोप और एशिया में अमेरिका महाद्वीप से आए।


Class 10 History Chapter 3 Important Objective Question Answer (MCQ)

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1. चीनी को किस स्थान से निर्यात किया जाता था ?

    1. पॉटरी
    2. चीनी
    3. भारत
    4. भूटान

Ans –  A 

2. सोने चांदी जैसी कीमती धातुएँ कहाँ से कहाँ तक पहुँचाती थी ?

    1. अमेरिका से औस्ट्रेलिया
    2. यूरोप से एशिया
    3. एशिया से यूरोप
    4. इनमेंं से कोई नहीं

Ans –  B

3.  नुडल्स किस देश का व्यंजन है,जो बाद में और देशों में फैला ?

    1. चीन
    2. भारत
    3. अमेरिका
    4. बांग्लादेश

Ans –   A

4. अमेरिका की खोज किसने की ?

 

    1. क्रिसटोफर कोलम्बस
    2. मार्को पोलो
    3. सिकंदर
    4. जॉन पाल

Ans –   A

5. किस सब्जी का इस्तेमाल करने से यूरोप के गरीब लोगों की जिन्दगी बेहतर हो गई ?

    1. भिन्डी
    2. आलू
    3. गोभी
    4. मटर

Ans –  B

6. 1840 में किस फसल के खराब होने से लाखों भुखमरी का शिकार हो गए ?

    1. बादाम
    2. काजू
    3. आलू
    4. कोई भी नहीं

Ans –   C

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7. आलू किस देश के लोंगों के लिए वरदान साबित हुआ ?

    1. आयरलैंड
    2. भूटान
    3. श्रीलंका
    4. अमेरिका

Ans –  A

8. यूरोप की सम्पदा को कीमती धातुओं जैसे सोना चांदी से किसने बढ़ाया ?

    1. भारत
    2. चीन
    3. मेक्सिको और पेरू
    4. अमेरिका

Ans –   C

9. सोने का शहर किस जगह को माना जाने लगा ?

    1. एल डोराडो
    2. ब्राजील
    3. हांगकांग
    4. दिल्ली

Ans –   A

10. स्पेनिश और पुर्तगाली सेनाओं ने किस देश को अपना उपनिवेश बनाना आरम्भ कर दिया ?

    1. न्यूजीलैंड
    2. ऑस्ट्रेलिया
    3. अमेरिका
    4. चीन

Ans –   C

11. स्पेनिश विजेताओं की विजय में कौन-सा हथियार मददगार रहा ?

    1. बंदूक
    2. हथगोले
    3. चेचक जैसी बीमारी
    4. रणनीति

Ans –   C

12. 18 वीं शताब्दी के बाद भी कौन-से देश बहुुत धनी थे ?

    1. भारत
    2. चीन
    3. (क) और (ख) दोनों
    4. कोई भी नही

Ans –   C

13. 19वीं सदी में दुनिया के तेजी से बदलने के क्या-क्या कारण रहे ?

    1. आर्थिक व सामाजिक
    2. राजनितिक व सांस्कृतिक
    3. तकनीकी
    4. उपरोक्त सभी

Ans –   D

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14. आर्थिक विनिमय के प्रवाह या गतियों के नाम बताओ ?

    1. व्यापार
    2. श्रम
    3. पूंजी
    4. उपरोक्त सभी

Ans –  D

15. ब्रिटेन का पेट भरने के लिए किन देशों ने जमीनों को साफ़ करके खेती करना आरम्भ कर दिया ?

    1. अमेरिका
    2. रूस
    3. आस्ट्रेलिया
    4. उपरोक्त सभी

Ans –  D

16. 18 वीं शताब्दी के मध्य तकनीकी आविष्कार कौन-सा था ?

    1. भाप का इंजन
    2. रेलवे
    3. टेलीग्राफ
    4. उपरोक्त सभी

Ans –  D

17. किन जगहों से जानवरों की बजाय उनका मांस ही यूरोप भेजा जाने लगा ?

    1. अमेरिका
    2. न्यूजीलैंड
    3. ऑस्ट्रेलिया
    4. उपरोक्त सभी

Ans –  D

18. 1890 के दशक में अफ्रीका में कौन-सी बीमारी तेजी से फैली ?

    1. चेचक
    2. रिडरपेस्ट
    3. तपेदिक
    4. केंसर

Ans –   D

19. किस देश के लोग तनख्वाह पर काम करना पसंद नही करते थे ?

    1. अमेरिका
    2. रूस
    3. अफ्रीका
    4. यूरोप

Ans –   D

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20. रिंडरपेस्ट ने कितने प्रतिशत मवेशियों को मौत की नींद सुला दिया ?

    1. 50%
    2. 70%
    3. 80%
    4. 90%

Ans –   D

21. भारत के मजदूर दूसरे देश में कौन-से क्षेत्रों में अधिक जाते थे ?

    1. पूर्वी उतर प्रदेश
    2. बिहार
    3. तमिलनाडु
    4. उपरोक्त सभी

Ans –    D

22. इनमें से कौन अनुबंधित मजदूरों के वंशज हैं ?

    1. वी. एस. नायपाॅॅल
    2. रामनरेश सरवन
    3. शिवनरैैन चन्द्रपाल
    4. उपरोक्त सभी

Ans –    D

23. हैदराबादी सिन्धी व्यापारियों में बंदरगाहों पर बड़े-बड़े एम्पोरियम कब खोले ?

    1. 1850
    2. 1860
    3. 1870
    4. 1880

Ans –   B

24. तकनीकी प्रगति के कौन-से कारक हैं ?

    1. सामाजिक
    2. आर्थिक
    3. राजनितिक
    4. उपरोक्त सभी

Ans –

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